सिक्ख धर्म के प्रमुख गुरु | Sikh Dharm ke 10 Pramukh Guru – Naam, History and Teachings
सिख धर्म के प्रमुख गुरु
सिख धर्म का जन्म भारत में 15वीं सदी के उत्तरार्ध में पंजाब क्षेत्र में हुआ। इसका संस्थापक गुरु नानक देव जी थे। सिख धर्म का मूल उद्देश्य ईश्वर की सच्चाई की प्राप्ति, मानवता की सेवा, और धर्म तथा न्याय की स्थापना है। सिख धर्म की पहचान इसके गुरु, उनके उपदेश और उनके द्वारा स्थापित सिद्धांतों से होती है। इस लेख में हम सिख धर्म के दस प्रमुख गुरुओं और उनके योगदान पर विस्तार से चर्चा करेंगे।
1. गुरु नानक देव (1469–1538)
गुरु नानक देव जी सिख धर्म के प्रथम गुरु और संस्थापक थे। उनका जन्म 15 अप्रैल 1469 को तलवंडी (अब ननकाना साहिब, पाकिस्तान) में हुआ था। गुरु नानक देव जी ने सिख धर्म की नींव ईश्वर की एकता, सच्चाई, सेवा और समानता पर रखी। उन्होंने जाति, पंथ और धर्म के भेदभाव को खारिज किया और मानवता के लिए ‘नाम जपना, किरत करना और वंड छकना’ का संदेश दिया।
महत्वपूर्ण योगदान:
- सिख धर्म की बुनियाद रखी।
- इनकी याद में हुजुर साहिब गुरुद्वारा, पंजाब में करतारपुर नामक स्थान पर बनाया गया है।
- इन्होंने ही “दस मुकामी रेकता” की स्थापना की थी।
- इनके द्वारा ही “लंगर व्यवस्था” की शुरुआत की गई थी जिसे गुरु अंगद ने स्थायी बना दिया था।
- सामाजिक समानता और मानवाधिकार की अवधारणा दी।
- नानक पंथ के रूप में सिख समुदाय की स्थापना।
- इनके पुत्र का नाम श्रीचन्द था जिन्होंने “उदासीनी सम्प्रदाय” की स्थापना की थी।
2. गुरु अंगद देव (1538–1552)
गुरु अंगद देव जी, गुरु नानक देव जी के शिष्य और उनके उत्तराधिकारी थे। उनका जन्म 31 मार्च 1504 को माथुरा, उत्तर प्रदेश में हुआ था। उन्होंने गुरुमुखी लिपि का विकास किया, जो आज सिख धर्म की धार्मिक ग्रंथों के लिए मुख्य भाषा है।
महत्वपूर्ण योगदान:
- गुरुमुखी लिपि की रचना।
- सेवा और भक्ति के माध्यम से समुदाय को संगठित किया।
- गुरु नानक के उपदेशों को आगे बढ़ाया।
- गुरुमुखी लिपि का पहला कवि बाबा फरीद को माना जाता है।
- पंजाब में गुरु अंगद और मुग़ल शासक हुमायूँ की मुलाकात हुई थी।
3. गुरु अमरदास (1552–1574)
गुरु अमरदास जीसिख धर्म के तीसरे गुरु थे। उनका जन्म 5 मई 1479 को चक्का, पंजाब में हुआ। उन्होंने सिख धर्म में लंगर की परंपरा को मजबूत किया और जाति प्रथा के खिलाफ संघर्ष किया।
महत्वपूर्ण योगदान:
- लंगर की स्थायी व्यवस्था।
- सेवा और समानता के मूल सिद्धांतों का प्रचार।
- गुरुद्वारों का निर्माण और संगठन।
- इन्होंने सिक्खों और हिन्दुओं के विवाह को अलग करने के लिए “लवन पद्यति” की शुरुआत की।
- “आनंद कारज” सिक्खों के विवाह समारोह है जिसका अर्थ है आनंदमय संघ — इसे गुरु अमरदास ने ही शुरू किया था।
- सिक्ख सम्प्रदाय के लोगों का विवाह “आनन्द कारज एक्ट 2012” के तहत होता है।
4. गुरु रामदास (1574–1581)
गुरु रामदास जी सिख धर्म के चौथे गुरु थे। उनका जन्म 24 सितंबर 1534 को गोसाई, पाकिस्तान में हुआ। उन्होंने अमृतसर नगर और हरिमंदिर साहिब (स्वर्ण मंदिर) के लिए योजना बनाई। 1577 ई० में अकबर ने गुरु रामदास को बीघा जमीन दी थी जिस पर अमृतसर नामक शहर बसाया गया। मुस्लिम संत मियां मीर के हाथों स्वर्ण मंदिर की नींव रखी गयी थी। मियां मीर, शाहजहाँ और जहाँगीर दोनों के समकालीन थे। महाराजा रणजीत सिंह ने इस मंदिर को सोने से जड़वाया था।
महत्वपूर्ण योगदान:
- सामाजिक सुधार और सामुदायिक संगठन।
- हरिमंदिर साहिब की नींव का सपना।
- भक्ति, सेवा और संयम के उपदेश।
- इन्होंने ही बताया था कि एज गुरु से दूसरे गुरु में आत्मा स्वतः ही चली जाती है।
5. गुरु अर्जुनदेव (1581–1606)
गुरु अर्जुन देव जी सिख धर्म के पाँचवे गुरु थे। उनका जन्म 15 अप्रैल 1563 को गोसाई, पाकिस्तान में हुआ। उन्होंने सिख धर्म का पवित्र ग्रंथ, गुरु ग्रंथ साहिब को संकलित किया। इनके द्वारा ही आदिग्रंथ का संकलन करवाया गया था जिसमें बाबा फरीद, नामदेव, रामानन्द, धन्ना, सेना, रैदास, कबीर और सधना के गीतों को संकलित किया गया है।
महत्वपूर्ण योगदान:
- गुरु ग्रंथ साहिब का संकलन।
- हरिमंदिर साहिब का निर्माण।
- सामाजिक न्याय और धार्मिक सहिष्णुता का प्रचार।
- उन्हें मुग़ल शासक जहाँगीर ने शहीद किया।
- गुरु अर्जुन देव के द्वारा ही तरनतारन नामक नगर की स्थापना की गयी थी।
6. गुरु हरगोबिंद (1606–1645)
गुरु हरगोबिंद जी सिख धर्म के छठे गुरु थे। उनका जन्म 19 जून 1595 को अमृतसर में हुआ। उन्होंने सिखों को आत्मरक्षा और राजनीति के क्षेत्र में सशक्त बनाया। इन्होंने सिक्खों को एक सैनिक सम्प्रदाय बना दिया और उन्हें एक लड़ाकू जाति में बदल दिया।
महत्वपूर्ण योगदान:
- सिखों के लिए सैन्य संगठन।
- आत्मरक्षा के सिद्धांत।
- गुरुद्वारों और धार्मिक स्थलों का संरक्षण।
- अकाल तख्त की स्थापना इन्होंने ही की थी जिसका अर्थ है अमर परमेश्वर का तख़्त।
- मुगलों से इनकी दो बार मुठभेड़ हुई थी – पहली बार लाहिरा में और दूसरी बार करतारपुर में।
7. गुरु हरराय (1645–1661)
गुरु हरराय जी सिख धर्म के सातवें गुरु थे। उनका जन्म 16 जनवरी 1630 को लाहौर में हुआ। वे शांति और दया के लिए प्रसिद्ध थे। ये गुरु हरगोविंद के पुत्र थे और इन्होंने दाराशिकोह की मुग़ल उत्तराधिकार युद्ध में मदद की थी। गुरु हरराय का एक पुत्र रामराय था जोकि औरंगजेब से जाकर मिल गया था।
महत्वपूर्ण योगदान:
- सिख समुदाय में शांति और धर्म का प्रचार।
- रोगियों और गरीबों की सेवा।
- वनस्पति और चिकित्सा ज्ञान का प्रसार।
8. गुरु हरिकिशन (1661–1664)
गुरु हरिकिशन जी सिख धर्म के आठवें गुरु थे। उनका जन्म 7 जुलाई 1656 को करनाल में हुआ। वे बहुत कम उम्र में गुरु बने और उनका जीवन अल्पकालिक रहा। ये सबसे कम उम्र में गुरु बने थे लेकिन इन्हें चेचक हो जाने के कारण इनकी मृत्यु जल्दी हो गयी थी।
महत्वपूर्ण योगदान:
- युवा सिखों के लिए प्रेरणा।
- शिक्षा और धार्मिक अध्ययन का प्रचार।
9. गुरु तेगबहादुर (1664–1675)
गुरु तेग बहादुर जीसिख धर्म के नौवें गुरु थे। उनका जन्म 1 अप्रैल 1621 को अमृतसर में हुआ। उन्होंने धर्म और मानवाधिकार की रक्षा के लिए अपने प्राणों की आहुति दी। इन्हें “बाकला दे बाबा” की उपाधि प्राप्त थी। इनके प्रमुख विरोधियों में धीनमल और रायमल प्रमुख थे। औरंगजेब ने इन्हें सरे बाजार फांसी की सजा दे दी थी क्योंकि इन्होंने इस्लाम स्वीकार करने से मना कर दिया था। इनके सम्मान में शीशगंज गुरुद्वारा, दिल्ली में बना हुआ है।
महत्वपूर्ण योगदान:
- धार्मिक स्वतंत्रता का संरक्षण।
- मुस्लिम और हिंदू समुदाय के उत्पीड़न के खिलाफ संघर्ष।
- उन्हें मुग़ल शासक औरंगज़ेब ने शहीद किया।
10. गुरु गोविन्द सिंह (1675–1708)
गुरु गोबिंद सिंह जी सिख धर्म के दसवें और अंतिम मानव गुरु थे। उनका जन्म 22 दिसंबर 1666 को पटना साहिब में हुआ। उन्होंने खालसा पंथ की स्थापना की और सिख धर्म को संगठित किया। इन्होंने गुरु की गद्दी को समाप्त कर दिया और गुरु ग्रन्थ साहिब को अपना और सिक्खों का प्रधान गुरु माना। औरंगजेब ने इनके दो पुत्रों जोरावर सिंह और फतेह सिंह को जिन्दा दीवार में चुनवा दिया था क्योंकि इन्होंने भी इस्लाम स्वीकार करने से मना कर दिया था।
महत्वपूर्ण योगदान:
- खालसा पंथ की स्थापना।
- खालसा पंथ में पांच व्यक्तियों को शामिल किया गया था: दया सिंह, धर्म सिंह, साहिब सिंह, मोखम सिंह और फतेह सिंह।
- गुरु गोविन्द सिंह ने फारसी में एक काव्य लिखकर औरंगजेब के पास पत्र के रूप में भेजा, इस पत्र को जफरनामा कहा जाता है।
- इन्होंने कई नाटक लिखे जैसे कि – कुक्कुट विलास, राम अवतार, कृष्ण अवतार और विचित्र नाटक आदि।
- होला मोहल्ला उत्सव, इनके द्वारा ही शुरू किए गया था जो कि होली के अगले दिन मनाया जाता है।
- पांच ककार (कंघ, कड़ा, कंग, केश, कच्छा) की परंपरा।
- गुरु ग्रंथ साहिब को अंतिम और शाश्वत गुरु घोषित किया।
- साहस, धर्म और न्याय का संदेश।
सिख गुरुओं का सामूहिक महत्व
सिख धर्म के सभी गुरु मिलकर एक ऐसा धर्म स्थापित करने में सफल हुए जो भक्ति, सेवा और सामाजिक न्याय पर आधारित है। प्रत्येक गुरु ने अपने समय और परिस्थिति के अनुसार सिख समुदाय को मार्गदर्शन दिया।
- भक्ति और ईश्वर की सच्चाई: गुरु नानक देव जी से शुरू होकर गुरु अर्जुन देव जी तक।
- सामाजिक सुधार और समानता: गुरु अमरदास जी, गुरु रामदास जी और गुरु हरगोबिंद जी।
- धर्म और स्वतंत्रता की रक्षा: गुरु तेग बहादुर जी और गुरु गोबिंद सिंह जी।
निष्कर्ष
सिख धर्म के गुरु न केवल धार्मिक नेता थे, बल्कि समाज सुधारक, शिक्षाविद, और मानवता के संरक्षक भी थे। उन्होंने अपने अनुयायियों को न केवल भक्ति में लीन होने का संदेश दिया बल्कि सेवा, समानता और न्याय के सिद्धांतों को भी अपनाने की प्रेरणा दी। सिख धर्म के गुरु आज भी विश्वभर में अपने अनुयायियों के लिए मार्गदर्शक बने हुए हैं।
सिख धर्म के गुरु हमें सिखाते हैं कि ईश्वर की भक्ति, मानव सेवा और न्याय का मार्ग हमेशा हमें जीवन में सही दिशा दिखाता है। उनका योगदान केवल धार्मिक दृष्टि से नहीं बल्कि सामाजिक और नैतिक दृष्टि से भी अतुलनीय है।
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