मोहेंजोदड़ो: मृतकों का टीला – समय की रेत में छुपी कहानी | Mohenjo-Daro : The Mound of the Dead – A Story Buried in the Sands of Time
मोहेंजोदड़ो: मृतकों का टीला – समय की रेत में छुपी कहानी | Mohenjo-Daro : The Mound of the Dead – A Story Buried in the Sands of Time
साल था 1922। सिंधु नदी के किनारे फैली ज़मीन पर हवा अजीब-सी सरसराहट कर रही थी, मानो कोई पुरानी दास्तान सुनाना चाह रही हो। तभी वहाँ खुदाई कर रहे पुरातत्वविद् आर. डी. बनर्जी ने अपने औज़ार से एक पुरानी ईंट को खटखटाया। मिट्टी हटी और सामने आया एक पुराना मकान, मानो सदियों की नींद से जाग रहा हो।
उन्हें अंदाज़ा नहीं था कि वह जिस जगह पर खड़े हैं, वह कभी दुनिया की सबसे उन्नत सभ्यताओं में से एक – सिंधु घाटी सभ्यता का गौरवशाली नगर था।
मृतकों का टीला – नाम के पीछे की कहानी
स्थानीय लोग इस जगह को लंबे समय से “मोहेंजो-दड़ो” कहते थे। सिंधी भाषा में “मोहेंजो” का मतलब है मृतकों का और “दड़ो” का मतलब है टीला।
जब खुदाई आगे बढ़ी, तो उनके सामने कंकालों के ढेर, उजड़े हुए मकान और टूटी हुई गलियाँ सामने आईं। ऐसा लगा मानो यह नगर किसी बड़ी आपदा के बाद अचानक सो गया हो और समय की रेत में दब गया हो। तभी से यह जगह सचमुच “मृतकों का टीला” कहलाने लगी।
एक योजनाबद्ध नगर की कहानी
खुदाई ने एक अद्भुत राज़ खोला – यह कोई साधारण बस्ती नहीं, बल्कि बेहतरीन शहरी योजना वाला नगर था।
- गलियाँ उत्तर-दक्षिण और पूर्व-पश्चिम दिशा में सीधी थीं।
- पक्की ईंटों से बने दो-तीन मंज़िला मकान थे, जिनमें आँगन और सीढ़ियाँ भी थीं।
- हर घर में नाली का कनेक्शन था, जो मुख्य नालियों से जुड़ता था।
महान स्नानागार की रहस्यमयी गाथा
नगर के बीचों-बीच खुदाई में एक अद्भुत संरचना सामने आई – महान स्नानागार (Great Bath)।
पक्की ईंटों से बना यह स्नानागार जलरोधक परत से ढंका हुआ था, जहाँ शायद धार्मिक अनुष्ठान होते होंगे। कहानीकार कहते हैं कि यहाँ लोग त्योहारों पर स्नान कर एक-दूसरे को शुभकामनाएँ देते होंगे, जैसे आज भी कई संस्कृतियों में होता है।
उन्नत जीवन की झलक
- लोग गेहूँ और जौ की खेती करते थे।
- तांबा, कांसा, सोना और मनकों की वस्तुओं का व्यापार करते थे।
- यहाँ की कला और शिल्प अद्भुत थी – “नृत्य करती युवती” की कांस्य प्रतिमा और “पुजारी” की मूर्ति आज भी उस युग की रचनात्मकता का सबूत हैं।
- उनकी एक लिपि थी, जो आज तक पूरी तरह पढ़ी नहीं जा सकी है – एक अधूरी चिट्ठी, जो आज भी हमें रहस्य से भर देती है।
पतन की रहस्यमयी गुत्थी
- बाढ़ या भूकंप जैसी प्राकृतिक आपदाएँ
- सिंधु नदी का मार्ग बदलना, जिससे जल संकट उत्पन्न हुआ
- महामारियाँ, जिनसे नगर के लोग धीरे-धीरे नष्ट हो गए
- या शायद कोई आक्रमण, जिसने इस सुनहरे नगर को राख में बदल दिया
आज का मोहेंजोदड़ो
आज यह स्थल यूनेस्को विश्व धरोहर स्थल है। पर्यटक यहाँ खंडहरों के बीच चलते हैं, संग्रहालय में नृत्य करती युवती को निहारते हैं, और कल्पना करते हैं कि कभी यह जगह कितनी जीवंत रही होगी।
हालांकि, बारिश, कटाव और मानवीय लापरवाही इस धरोहर को नुकसान पहुँचा रही हैं। संरक्षण के प्रयास जारी हैं, ताकि यह सभ्यता आने वाली पीढ़ियों को अपनी कहानी सुना सके।
मोहेंजोदड़ो से हमें क्या सीख मिलती है ?
- अनुशासन और योजना से समाज का सुनियोजित विकास संभव है।
- प्राकृतिक संतुलन की अनदेखी से विनाश तय है।
- और सबसे अहम, इतिहास को संरक्षित करना भविष्य की पीढ़ियों के लिए ज़रूरी है।
Important Facts (Exam Oriented)
- मोहेंजोदड़ो की खोज 1922 ई. में आर. डी. बनर्जी ने की थी।
- यह पाकिस्तान के सिंध प्रांत के लरकाना जिले में स्थित है।
- “मोहेंजोदड़ो” का अर्थ है “मृतकों का टीला”।
- यहाँ से मिली नृत्य करती युवती की कांस्य प्रतिमा विश्व प्रसिद्ध है।
- महान स्नानागार को दुनिया का पहला सार्वजनिक स्नानागार माना जाता है।
- यहाँ के घर पक्की ईंटों से बने बहुमंज़िला भवन थे।
- सिंधु घाटी सभ्यता की लिपि अब तक अपठित है।
- मोहेंजोदड़ो को यूनेस्को विश्व धरोहर स्थल घोषित किया गया है।
- सभ्यता का पतन लगभग 1500 ई.पू. के आसपास हुआ माना जाता है।
- सिंधु घाटी सभ्यता का समय 2500 ई.पू. से 1500 ई.पू. के बीच माना जाता है।
- शहर की गलियाँ उत्तर-दक्षिण और पूर्व-पश्चिम दिशा में सीधी थीं।
- नगर में संगठित जल निकासी प्रणाली मौजूद थी, जो उस समय के लिए अद्भुत थी।
- मोहेंजोदड़ो में गेहूँ, जौ और कपास की खेती की जाती थी।
- यहाँ से मनके, शंख और धातु के आभूषण भी प्राप्त हुए हैं।
- पुजारी की मूर्ति, जिसे “पुजारी-राजा” कहा जाता है, यहाँ से मिली है।
- शहर की जनसंख्या का अनुमान लगभग 35,000 से 40,000 लोगों का लगाया जाता है।
- यहाँ के मकानों में आँगन और सीढ़ियाँ भी होती थीं, जो उन्नत वास्तुकला को दर्शाती हैं।
- सिंधु नदी के मार्ग में बदलाव को भी इस सभ्यता के पतन का कारण माना जाता है।
- मोहेंजोदड़ो के अवशेष आज भी संरक्षण की आवश्यकता महसूस कराते हैं।
- यह स्थान प्राचीन भारत के व्यापार और शहरी विकास का उत्कृष्ट उदाहरण है।
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