जलालाबाद बना परशुरामपुरी | उत्तर प्रदेश के शाहजहांपुर जिले के जलालाबाद का नाम बदलकर परशुरामपुरी किया गया। जानिए पूरी जानकारी, धार्मिक महत्व और विकास कार्यों के बारे में।

Post Update: सितंबर 03, 2025

उत्तर प्रदेश: शाहजहांपुर के जलालाबाद का नाम बदलकर परशुरामपुरी

उत्तर प्रदेश के शाहजहांपुर जिले के जलालाबाद नगर का नाम अब परशुरामपुरी कर दिया गया है। इस नाम परिवर्तन को केंद्रीय गृह मंत्रालय (MHA) की मंजूरी मिल चुकी है। यह कदम सांस्कृतिक और ऐतिहासिक दृष्टि से अत्यंत महत्वपूर्ण माना जा रहा है।

क्या है पूरा मामला?

  • नाम परिवर्तन की मंजूरी: गृह मंत्रालय ने उत्तर प्रदेश सरकार के प्रस्ताव को स्वीकार करते हुए जलालाबाद का नाम बदलकर "परशुरामपुरी" करने की अनुमति दे दी है।
  • केंद्रीय मंत्री का संदेश: केंद्रीय राज्यमंत्री जितिन प्रसाद ने प्रधानमंत्री मोदी, गृह मंत्री अमित शाह और मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ को धन्यवाद देते हुए इसे सनातनी समाज के लिए गर्व का क्षण बताया।
  • राजनीतिक एवं सांस्कृतिक सन्दर्भ: यह नाम परिवर्तन योगी सरकार की उस नीति का हिस्सा है जिसके तहत ऐतिहासिक और धार्मिक महत्व रखने वाले स्थानों की पुरानी पहचान को पुनर्स्थापित किया जा रहा है।

क्यों रखा गया नाम परशुरामपुरी?

  • जलालाबाद को भगवान परशुराम की जन्मस्थली माना जाता है।
  • यहां भगवान परशुराम का एक प्राचीन और महत्वपूर्ण मंदिर भी स्थित है।
  • नगर पालिका परिषद ने वर्ष 2018 और 2023 में नाम परिवर्तन का प्रस्ताव पारित किया था।
  • 24 अप्रैल 2022 को इसे आधिकारिक रूप से भगवान परशुराम की जन्मस्थली घोषित किया गया था।

धार्मिक पर्यटन को मिलेगा बढ़ावा

नाम परिवर्तन के साथ-साथ क्षेत्र में धार्मिक पर्यटन और विकास कार्यों को भी प्रोत्साहन दिया जा रहा है:

  • मुख्यमंत्री संवर्धन योजना के तहत लगभग ₹19 करोड़ मंदिर और आसपास के क्षेत्र के सौंदर्यीकरण के लिए स्वीकृत।
  • अमृत सरोवर योजना के अंतर्गत ₹11 करोड़ रामताल (जल निकाय) के विकास और घाट निर्माण हेतु प्रदान किए गए।

सारांश तालिका

पहलू विवरण
नया नाम परशुरामपुरी
मंजूरी देने वाला केंद्रीय गृह मंत्रालय
धार्मिक महत्व भगवान परशुराम की जन्मस्थली
विकास कार्य ₹19 करोड़ मंदिर क्षेत्र + ₹11 करोड़ रामताल विकास
सांस्कृतिक संदर्भ सनातनी गौरव व पहचान

निष्कर्ष

शाहजहांपुर के जलालाबाद का नाम बदलकर परशुरामपुरी किया जाना केवल प्रशासनिक निर्णय नहीं है, बल्कि यह स्थानीय लोगों की भावनाओं, धार्मिक आस्था और सांस्कृतिक धरोहर को सम्मान देने का प्रतीक है। इस बदलाव से क्षेत्रीय धार्मिक पर्यटन को भी नई दिशा और गति मिलेगी।

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